Page 8 - NIS Hindi 01-15 March,2023
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व्यश्क्तत्व   गंगूबाई ्होंगल




                                                            भारतीय शास्त्  ी य स ंगीत की प्र नस द्ध गा नय का
                                                            भारतीय शास्त्ीय संगीत की प्रनसद्ध गानयका
                                                               संघर््ष की ऐसी लकीर
                                                               स   ंघर््ष की ऐसी लकीर


                                                                 र्
                                                                    ी जो आज तक अप
                                                                                                      ि
                                                          खींर्ी जो आज तक अपिी
                                                          ख
                                                               ीं

                                                                                                          ी
                                                                  नम    साल आप ह              ै...
                                                                  नमसाल आप है...
                                                           ‘ख्याल’ गायकरी करी पिचान और हकराना ्घराना करी बेिोड़
                                                           शक्ख्सयत गंगूबाई, चािे राग भैरव िो या भरीमपलासरी, राग
                                                           भोपालरी िो या चंद्रकौंस, लंबरी और खींचरी िुई गंभरीर ताल,
                                                          भारतरीय संगरीत करी ऐसरी ऊंचाई, ििां इस ‘गानेवालरी’ ने सं्घषणि
                                                           करी ऐसरी लकरीर खींचरी िो आि तक अपनरी हमसाल आप िै।
                                                            गंगूबाई िंगल को बचपन में िरी िाहतगत और हलंगभेि का
                                                          सामना करना पड़ा क्योंहक गंगूबाई िेविासरी परंपरा वाले केवट
                                                          पररवार से तार्लुक रखतरी थरी, ििां कुछ अलग करना पिाड़ से
                                                          टकराने िैसा था। लेहकन गंगूबाई ने कभरी िार निीं मानरी और
                                                                             …
       िन्म: 5 माचणि, 1913                                ‘अपने िरीवन के संगरीत’ पर अटल रिकर हिंिुस्तानरी शास्त्रीय
       हनधन: 21 िुलाई, 2009                                       संगरीत के हिग्गिों में अपनरी िगि बनाई...

        नह   ं  दुस्िानली शास्त्रलीर् संगलीि में ‘ख्र्ाल’ शैलली कली मशहूि भाििलीर्   पि हाथ िखकि खींचली गई िान आसमान को भेदिली हुई संगलीि कली

                                                             समझ िखने वालरों के मन को जोड़ देिली थली। आजादली पूवया 1945 िक
              गानर्का गंगूबाई हंगल का जन्म 5 माचया, 1913 को कनायाटक
              के धािवाड़ नजले के शुक्वािादापेिे में हुआ था। गंगूबाई में   उन्हरोंने ख्र्ाल, भजन, ्ठुमिली पि आधारिि प्रस्िुनि देश के अलग-
        संगलीि के प्रनि ऐसा लगाव था नक बचपन के नदनरों में वह ग्ामोफोन   अलग शहिरों में दली। इसके बाद उप-शास्त्रलीर् शैलली में गाना बंद कि
                                                                                                         े
        सुनने के नलए सड़क पि दौड़ पड़िली थीं औि उस आवाज कली नकल   नदर्ा औि शास्त्रलीर् शैलली में िाग गाना जािली िखा। ऑल इंनिर्ा िनिर्ो
        किने कली कोनशश कििली थीं। बेटली में संगलीि कली प्रनिभा को देखकि   पि ननर्नमि उनकली गार्कली सुनने को नमलिली थली। भािि के उत्सवरों में
        गंगूबाई कली संगलीिज्ञ मां अंबाबाई ने कनायाटक संगलीि के प्रनि अपने   बुलाई जािीं थीं। हंगल गांव कली िहने वालली गंगूबाई ने आनथयाक संकट,
        लगाव को दूि िख नदर्ा। संगलीि में पहचान िखने वालली अंबाबाई ने   पड़ोनसर्रों कली ििफ से जािलीर् आधाि पि नखल्लली उड़ाने औि पेट कली
        र्ह सुननल्श्चि नकर्ा नक उनकली बेटली, एच. कृष्णाचार्, दत्ोपंि औि   आग कली बाधाओं को संघषया से पाि कििे हुए भाििलीर् शास्त्रलीर् संगलीि
                                              या
        नकिाना उस्िाद सवाई गंधवया से सवयाश्ष््ठ नहंदुस्िानली शास्त्रलीर् संगलीि   कली नब्ज पकड़ कि नकिाना घिाना कली नविासि को समृधि नकर्ा औि
                                   े
        सलीखे। संगलीि में कुछ कि गुजिने कली नजद् औि संकल्प का अंदाजा   िाष्ट्र को उच्च स्िि का संगलीि नदर्ा।
        इससे लगार्ा जा सकिा है नक गंगूबाई हंगल गुरु के घि पहुंचने के   गंगूबाई हंगल का वषया 1929 में सोलह साल कली उम्र में गुरुिाव
        नलए पहले 30 नकलोमलीटि ट्रेन से र्ात्रा कििली थली औि नफि पैदल भली   कौलगली से नववाह हुआ था। इनके दो बेटे औि एक बेटली थली। महज 4
        चलिली थली।                                           वषया बाद हली पनि कली मृत्र्ु हो गई। गंगूबाई हंगल को बच्चरों के पालन-
           मां अंबाबाई ने गंगू को गुरु सवाई गंदभया के पास भेजा िो गार्कली   पोषण के नलए अपने गहने औि घिेलू सामान िक बेचकि पैसे जुटाने
        का र्ह सफि मुंबई के छोटे-मोटे समािोह से शुरु होकि कनायाटक   पड़े। गंगूबाई के धलीिे-धलीिे खुलिे िाग, जैसे सुबह कली हि नकिण पि
        संगलीि  नृत्र्  अकादमली  पुिस्काि  (1962),  पद्मभूषण(1971),   कमल कली एक-एक पंखुड़ली खुलिली जा िहली हो। उनका र्ह गगनभेदली
        संगलीि  नाटक  अकादमली  (1973),  िानसेन  सम्मान  (1984),     स्वि 96 वषया कली उम्र में 21 जुलाई, 2009 को उनके ननधन के साथ
        पद्म नवभूषण(2002) सनहि कई सम्मान औि पुिस्काि िक पहुंचा।   हमसे जुदा हो गर्ा। गंगूबाई हंगल कली आत्मकथा नन्ा बदुनकना हादु’
        वजनदाि औि ्ठहिली हुई आवाज, नजसका एक-एक स्वि औि कान   (मेिे जलीवन का संगलीि) नाम से प्रकानशि हुई।  n





          6  न््ययू इंडि्या समाचार   1-15 माच्च 2023
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