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अधयातम धम् संसद में भारण के 127 साल
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गरीब वाे ह, जजसक
पास न िो सपने ह
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और न असिलाषा
-स्ामी िववेकानंद
'' मुझे गव् है सक मैं उस धम् से हूं सजसिे दुसिया को ससहषणुता और
साव्भौसमक सवीकृसत का पाठ पढाया है। हम ससर् साव्भौसमक
कि
ससहषणुता पर ही सवशवास िहीं करते बखलक, हम सभी धममों को सच के
रूप में सवीकार करते हैं।'' 11 ससतंबर, 1893 को सदया सवामी सववेकािंद
का यह प्रससद् 'सशकागो भारण' आज भी प्रासंसगक है। प्रधािमंत्ी
िरेन्द्र मोदी िे भी उन्हें याद करते हुए कहा था, '' सवामी सववेकािंद
करोडों भारतीयों के सदल और सदमाग में रहते हैं, सवशेर रूप से भारत के
गसतशील युवा सजिके सलए उिकी एक भवय दृखषट है।''
जन्म: 12 जनवरी 1863 मृतयु: 4 जुलाई 1902
नश यु लगते हैं, लनकन रे सब ईशवर तक हली जाते हैं।'' े
कागो में नदए अपने ऐनतहानसक भाषण में ट्वामली
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नशकागो धमया संसद के दौरान उनहोंने अपनली प्र्रक रात्रा के
नववेकानंद दननरा को नहंदू धमया, उसकली परंपरा और
सभरता से पररनचत करारा। उनके इस भाषण न े दौरान जो कुछ भली देखा उसे अपने भाषण में शानमल नकरा और
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भारत के बारे में दननरा के सोचने का तरलीका हली बदल नदरा। वापस आने के बाद उनहोंने रवाओं और समाज के नलए बहयुत
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इनतहास के पन्ों में अमर हए ट्वामली नववेकानंद के इस भाषण सराहनलीर काम नकए।
को 11 नसतंबर को 127 साल पूरे हयुए हैं। ट्वामली नववेकानंद का दस्षटकोण भारत और भारत के रवाओं
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नशकागो में ट्वामली नववेकानंद ने जसे हली अपने संबोधन के नलए नबलकुल आधयुननक था। एक बार जब एक रवक न े
कली शरूआत में कहा- 'मेरे अमनरकली भाईरों एवं बहनों', वहा ं ट्वामली नववेकांदन से आग्ह नकरा नक वो उसे श्लीमद् भागवद् गलीता
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उपस्ट्थत लोगों ने खड़े होकर उनका अनभवादन नकरा। ट्वामली का ज्ान करा दें तो उनहोंने उस रवक को परामशया नदरा नक पहल े
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नववेकानंद ने अपने संबोधन में कहा था,'' मयुझे गवया ह नक मैं छह महलीने वह फुटबॉल खेले और अपनली क्मता के अनसार
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उस धमया से हं नजसने दयुननरा को सनहषणता और सावयाभौनमक गरलीबों और असहारों कली सहारता करे नफर वह उसे गलीता का
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ट्वलीककृनत का पाठ पिारा ह। हम नसर्फ़ सावयाभौनमक सनहषणता ज्ान प्रदान करेंगे। ट्वामली नववेकानंद के शबदों में ''आप अपन े
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पर हली नवशवास नहीं करते बस्लक, हम सभली धममों को सच के भागर ननमायाता हवै। नजसके पास एक भली रूपरा नहीं ह वह गरलीब
रूप में ट्वलीकार करते हैं। मैं इस मौके पर वह पस्कतरां सयुनाना नहीं हवै, गरलीब तो वह ह नजसके पास न तो सपने हैं और न
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चाहता हं जो मैंने बचपन से राद कली और नजसे रोज़ करोड़ों अनभलाषा।'' ट्वामली नववेकानंद 19 वीं सदली के रोगली रामककृषण
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लोग दोहराते हैं। नजस तरह अलग-अलग जगहों से ननकलली परमहंस के नप्रर नशषर थे। उनहोंने रामककृषण मठ कली ट्थापना
ननदरां, अलग-अलग राट्तों से होकर आनखरकार समयुद्र में कली। रामककृषण मठ दयुननरा भर में आधरास््मक आंदोलन के नलए
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नमल जातली हैं, ठलीक उसली तरह मनषर अपनली इचछा से अलग- रामककृषण नमशन के रूप में जाना जाता हवै, इस मठ का आधार
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अलग राट्त चनता ह। रे राट्त देखने में भले हली अलग-अलग वेदांत का प्राचलीन नहंदू दशयान हवै।
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न्यू इंडिया समाचार 3