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वयसकितव    भारि रत्न खान अबदुल गफफार खान





                      भार् से बेइं्हा ्ोहबब्




                      करने िाले ‘समी्ां् गांधमी’






               महातमा गांधी के बेहद करीबी खान अबदुल गफफार खान ना केवल तहनदू-मुससलम
               एकिा के पक्धर थे बसलक वह अतहंसा के भी कट्टर समथ्भक थे। उनकी जयं  िी पर

               भारि उनहें श्रदांजतल अतप्भि कर रहा है...

         द      ट्तावेजों  के  अनसार  तो  खान                                 जली को नलखा है, “खान अबदयुल गफफार
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                                                                              खान  को  अब  भलली-भांनत  जान  लेने  के
                अबदयुल  गफफार  खान  एक
                पानकट्तानली नागररक थे लेनकन

        नदल  से  वह  एक  सच्  नहनदयुट्तानली  थे।                              बाद मैं ऐसा महसूस करतली हूं नक जहां तक
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                                                                                यु
                                                                              दननरा के अद्भुत वरस्कतरों से नमलने का
                                                                                                       यु
        उनहें 1987 में भारत के सवचोच् नागररक                                  सवाल है, इस तरह का सौभागर मझे अपने
        सममान  भारत  रत्न  से  सममाननत  नकरा                                  जलीवन  में  शारद  कोई  और  नहीं  नमलने
        गरा,  नजसके  वह  असलली  हकदार  थे।                                    वाला है। वे ‘नरू टेट्टामेंट’ कली सौमरता
        वह  ना  केवल  एक  ट्वतंत्रता  सेनानली  थे                             से रयुकत, ‘ओलड टेट्टामेंट’ के राजकुमार
        बस्लक एक नशक्षानवद, गांधलीवादली, नहनदू-                               हैं।  वे  नकतने  भगवतपरारण  हैं!    आपने
        मयुस्ट्लम एकता के पक्षधर और एकलीकृत                                   उनसे हमारा पररचर करारा, इसके नलए

        भारत के मखर समथयाकों में भली थे। वह धमया   जन््म : 6 फर्वरी 1890      मैं आपकली आभारली हूं।” अललीगढ़ मयुस्ट्लम
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        के आधार पर नवि-राषरि नसधिांत के प्रबल      ्मृतयु : 20 जि्वरी 1988    नवस्शवनवद्ालर से नशक्षा ग्हण करने वाले
        नवरोधली  थे।  जब  कांग्ेस  ने  एक  मयुस्ट्लम                          गफफार खान ने आजादली के बाद पानकट्तान
                                                        यु
        बहल देश में रूप में पानकट्तान के मांग   में भाग लेने के तरंत बाद पशतूनों के बलीच   में  रहने  का  ननणयार  नलरा  था।  उनहोंने
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        को  ट्वलीकार  कर  नलरा  तब  उनहोंने  खद   खदाई  नखदमतगार  नामक  एक  संगठन   महममद  अलली  नजन्ना  के  साथ  तालमेल
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        को छला हआ महसूस करते हए कांग्स     बनारा। इस संगठन ने भारत कली आजादली   नबठाने कली कोनशश कली। 8 मई 1948 को
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        नेताओं से कहा था, “आपने हमें भेनड़रों   के नलए अनहंसक आंदोलन चलारा और   पानकट्तान आजाद पाटमी का गठन नकरा
        कली तरफ फेंक नदरा है।”             पशतूनों कली राजनलीनतक चेतना जगाने कली   जो पानकट्तान का पहला राषरिलीर नवपक्षली
          खान  अबदयुल  गफफार  खान  के  प्रनत   कोनशश  कली।  गांधलीजली  के  नवचारों  और   दल था। पाटमी ने सकारातमक नवपक्ष कली
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        भारतलीरों के प्रेम, मान और सममान को   सझावों  से  प्रभानवत  गफफार  खान  उनके   भूनमका  ननभाने  और  अपनली  नवचारधारा
        प्रधानमंत्रली  नरेंद्र  मोदली  के  उस  बरान  से   करलीबली सहरोनगरों में से एक थे। गफफार   में  गैर-सांप्रदानरक  होने  कली  शपथ  लली।
        समझा जा सकता है नजसमें उनहोंने कहा   खान को उनके करलीबली अमलीर चंद बोमवाल   1984 में उनहें नोबेल शांनत परट्कार के
                                                                                                     यु
        था, “मेरा सौभागर रहा है नक बचपन में   ने सलीमांत गांधली के उपनाम से नवाजा था।  नलए नानमत नकरा गरा। 1985 में उनहोंने
        खान अबदयुल गफफार खान जली के चरण       गफफार  खान  का  वरस्कततव  नकतना   आनखरली बार भारत कली रात्रा कली। 1988
        छूने  का  मयुझे  अवसर  नमला  था।  मैं  इसे   नवशाल था, उसे नरिनटश नागररक और एक   में  नजरबंद  रहने  के  दौरान  पेशावर  में
                                                       या
        अपना गवया मानता हूं।”              सामानजक कारकताया मरूरररल लेट्टर  के   उनका ननधन हो गरा और अफगाननट्तान
                                                                                                 यु
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          भारत के ट्वतंत्रता संग्ाम के अगवा रहे   एक बरान से समझा जा सकता है। उनहोंने   के जलालाबाद में उनहें सपयुदया-ए-खाक कर
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        गफफार खान ने 1929 में कांग्स के सत्र   1939 में गफफार खान के बारे में गांधली   नदरा गरा। n
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