Page 9 - NIS Hindi 2021 November 16-31
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वयलकततव जयोहतराव गोहवंदराव फुले
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हली नहीं, उस वकत के कई मशहि लोगों से भली नभड़ गए।
पयुरे में फूलों से गजिे बनाने वाले परिवाि में 11 अप्रल, 1827
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को जरोनतबा का जनम हआ। कहा जाता है नक परिवाि लंबे समर स े
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मालली का काम किता था। इसनलए लोग उनह ‘फुले’ नाम से जानन े
लगे। रह वो समर था, जब एक ओि देश अंग्जली शासन के नखलाफ
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खड़ा हो िहा था तो दूसिली ओि देश में जािली छुआछूत, बालनववाह
जैसे कुप्रथाओं के नखलाफ भली आवाज उ्ठ िहली थली। इसली माहौल के
बलीच जरोनतबा ने मिा्ठली में अपनली पढ़ाई कली शयुरुआत कली। लोग नपता
से बोले-पढ़ने से तयुमहािा पयुत्र नकसली काम का नहीं िहेगा। सो नपता न े
ट्कूल हली छुड़वा नदरा। लनकन पढ़ने कली इचछा नदल में थली सो जरोनतबा
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ने 21 वषया कली उम्र में अंग्जली से 7वीं कक्ा कली पढ़ाई पिली कली। 1840
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में उनका नववाह सानवत्रली बाई से हआ। वहली सानवत्रली, नजनके साथ
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नमलकि जरोनतबा ने 1848 में पयुरे में लड़नकरों के नलए ट्कूल खोला।
कहा जाता है नक नकसली भाितलीर द्ािा खोला जाना वाला रह देश में
लड़नकरों का पहला ट्कूल था। कोई नशक्क पढ़ाने को िाजली नहीं
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हआ तो जरोनतबा ने पहले अपनली पत्ली सानवत्रली को पढ़ारा औि नफि
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सानवत्रली ने दूसिली बनचिरों को पढ़ाने कली शरुआत कली। इस बात पि
हंगामा मच गरा नक आनखि कैसे एक नािली नशक्क बनकि धमया औि
समाज से नवद्रोह कि सकतली है। जरोनतबा औि सानवत्रली को घि तक
छोड़ना पड़ा। लोगों के उलाहनों औि आनथयाक तंगली कली वजह से ट्कूल
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बंद हो गरा। लनकन दोनों ने हाि नहीं मानली। इसके बाद उनहोंने 1849
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में जूना गंज प्ठ में औि नफि 1851 में बयुधवाि प्ठ इलाके में दो औि
ट्कूल खोल िाले। जरोनतबा औि सानवत्रली बाई ने जो अलख जगाई तो बरी बचाओ, बरी पढ़ाओ जैसे नारी
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जलदली हली उनसे प्रेिरा लेकि वनचत समाज कली मनहलाओं के नलए 18 सश्तीकरण के जनआंदोलन की नींव में
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ट्कूल खल गए। सतली प्रथा, बाल नववाह के कट् टि नविोधली जरोनतबा डेढ़ सौ साल पहले गदए िए ज्ोगतबा के वही
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नवधवा नववाह के समथयाक भली थे। पयुरे में उनहोंने नवधवा आश्म कली गवचार हैं, गजनमें उनहोंने अगशक्ा को समाज
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शरुआत कली। सानवत्रली बाई इसकली सरोजक बनीं। बाल नववाह के की हर बुराई का गजममदार ठहरा्ा था।
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जरोनतबा के नविोध को सहली मानते हए अंग्ेजली शासकों ने 1872 में
पहलली बाि भाित में ननटव मैरिज एकट लागू कि 14 वषया से कम आर यु
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कली कनराओं के नववाह को प्रनतबनधत कि नदरा। 24 नसतंबि 1873
को जरोनतबा फुले ने सतरशोधक समाज कली ट्थापना कली थली। इस श्ष्ठ कृनत हैं। 28 नवंबि 1890 को उनका ननधन हो गरा। बेटली
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समाज का उद्शर मनहलाओं, नपछड़ली जानत के लोगों को समाज में बचाओ, बेटली पढ़ाओ जैसे नािली सशकतलीकिर के जनआंदोलन
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नरार नदलाना था। जरोनतबा फुले समाज के मखर अधरक् थे औि कली नींव में िढ़ सौ साल पहले नदए गए जरोनतबा के वहली नवचाि
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उनकली पत्ली सानवत्रलीबाई फुले मनहला नवभाग कली प्रमख थली। 1876 हैं, नजनमें उनहोंने अनशक्ा को समाज कली हि बयुिाई का नजममदाि
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में वे पूना नगि पानलक के सदट्र बने तो वारसिार लॉि्ट नलटन के ्ठहिारा था। वो एक महान नवचािक, ननट्वाथया समाजसेवली तथा
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ट्वागत में होने वाले खच का नविोध किने वाले 36 सदट्रों में व े क्रांनतकािली कारकताया थे। उनहोंने भाितलीर सामानजक सिचना कली
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अकेले थे। उनहोंने बहयुत सली नकताबें नलखकि जनजागिर का काम जड़ता को धवट्त किने का काम नकरा। मनहलाओं औि वनचतों
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नकरा। ‘गयुलामनगिली’, ‘तृतलीर ित्’, ‘ छत्रपनत नशवाजली िाजे भोसल े कली अपमानभिली नजंदगली में बदलाव लाने के नलए वे उस दौि में
का पावड़ा’, ‘नकसान का कोड़ा’ औि ‘अछूतों कली कैनफरत’, उनकली
हमेशा लड़ते िहे, जब रह सबसे कन्ठन काम था। n
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न्यू इडिया समाचार | 16-30 नवंबर 2021
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