Page 42 - NIS Hindi 16-31 JAN 2022
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राष्ट्र प्ाककृदतक खेती पर जोर
प्राककृनतक खेती खेती के पारंपररक सवरूप से धरती का सवास्थ् अच्छा होगा तो लोगों का जीवन भी
सुरडक्त होगा। ऐसे में ्ह जानना जरूरी है डक प्राकृडतक खेती कैसे की जाती है
प्राकृतिक खेिी
धबना लागत (शूनय बजट) प्ाकृधतक िेती की
कृधि लागत ्सामग्ी की िरीदारी पर धक्सानों
की धनभमारता को कम करने और परंपरागत क्ेत्
आिाररत प्ौद्ोधगधकयों पर भरो्सा करते हुए कृधि
की लागत को कम करने के धलए आशाजनक
्सािन के रूप में पहचान की गई है, धज्स्से मृदा कैसे बनता है जीवामृत: 10 धकलोग्ाम
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सवास्थय में ्सिार को बढ़ावा धमलता है। दे्सी गाय, जीिामृि देशी गाय का गोबर, 8-10 लीटर दे्सी गाय का
उ्सका गोबर और मूत् इ्स बारे में महतवपूणमा प्राकृततक कृति प्रतरिया धरती मूत्, 1.5 ्से 2 धकलोग्ाम गुड़, 1.5 ्से 2 धकलोग्ाम
भूधमका धनभाते हैं, धज्स्से धवधभन् इनपुट िेतों का अमृत है। प्रयोगों से पता बे्सन, 180 लीटर पानी, मुट् ठी भर पेड़ के नीचे
चला है तक 10 तकलोग्ाम
में ही बन जाते हैं, जो िेत को आव्यक ततव गोबर के साथ गनौमूत्र, गुड़, की धमट् टी। इन ्सामधग्यों में गुड़, बे्सन और
उपलबि कराती हैं। अनय पारंपररक प््ाएं जै्से आटा और बेसन आतद को गोबर को पानी या गौमूत् के ्सा् धमधश्रत कर
बायोमा्स के ्सा् धमट्ी में गीली घा्स डालना या तमलाकर जो तमश्रण बनता तरल ्सा बना लें। अब इन ्सामधग्यों को एक
धमट्ी को पूरे ्साल हररत आवरण ्से ढक कर है, वही जीवामृत है। ड्रम में डालकर लकड़ी के डंडे ्से घोलना है।
ठीक ्से घोलने के बाद जीवामृत बनाने के धलए
रिना, यहां तक धक बहुत कम पानी की उपलबिता दो ्से तीन धदन तक ढककर छाया में रि देना
की शस्धत में भी ऐ्से कायमा धकए जाते हैं जो पहले है। प्धतधदन लकड़ी के डंडे ्से इ्से दो धमनट
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्साल ्से ही ्सतत उतपादकता ्सधनश्चत करते हैं। घूमाना है। इ्से धफर बोरे ्से ढक देना है।
इ्स जीवामृत को जब ध्संचाई के ्सा् िेत में डाला जाता है तो भूधम में जीवाणुओं की ्संखया अधव्व्सनीय तरीके ्से बढ़
लाभ जाती है और भूधम के र्सायधनक व जैधवक गुणों में वृधधि होती है। जीवामृत को महीने में एक या दो बार उपलबिता के
अनु्सार 200 लीटर प्धत एकड़ के धह्साब ्से ध्संचाई के पानी के ्सा् दीधजए। इ्स्से धक्सानों के धमत् माने जाने वाले केंचुओं
की ्संखया बढ़ती है। प्ाकृधतक कृधि में गहरी जुताई की भी जरूरत नहीं होती। इतना ही नहीं, प्ाकृधतक कृधि भूधमगत जल
को भी बढ़ाती है। इ्स प्धरिया ्से मुखय फ्सलों के ्सा् ्सहयोगी फ्सलों को भी उगाया जा ्सकता है।
फलों के पेड़ में जीिामृि का प्रयोग घनजीिामृि
फलों के पेड़ों के पा्स दोपहर 12 बजे जो छाया यह जीवामृत का ही ्सिा रूप है, धज्से फ्सल बोने ्से पहले जमीन
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पड़ती है, उ्स छाया के पा्स प्धत पेड़ 2 ्से 5 लीटर में धमलाया जाता है। िूप में ्सिाए गए 200 धकलोग्ाम गोबर में ताजा
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जीवामृत महीने में एक या दो बार गोलाकार बना 20 लीटर जीवामृत धमलाकर दो धदन छाया में रिते हैं। इ्से एक
में डालना है। इ्स्से धमट्ी सवस् बनती है और बार धफर िूप में ्सिाकर, डंडे ्से पी्सकर महीन बना धदया जाता है।
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फ्सल भी उतनी ही बेहतर होती है। यही घनजीवामृत है धज्से एक एकड़ में प्योग कर ्सकते हैं।
परिव्यान का कािक बन िहली है। देश के नकसान अब िसारननक सममेलन में प्रधानमंत्रली निेंद्र मोदली का आह्ान अन् महतवपू्णया कदम
खाद कली खे्ली को छोड़कि प्राकृन्क खे्ली कली ओि लौट िहे हैं। है। देश के लाखों नकसानों ने इस नवनध को ट््ानप् कि नदरा है
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प्राकृन्क कृनष से देश में नई ऊजाया का संचाि हो िहा है। आजादली औि गजिा् के िांग नजले को पूिली ्िह से प्राकृन्क खे्ली नजला
के अमृ् महोतसव के अवसि पि व्यामान खे्ली कली दशा-नदशा के घोनष् कि नदरा गरा है। देश के कई गांव आज इस ओि परिवन्या्
नलए 16 नदसंबि को प्राकृन्क खे्ली के नवषर पि आरोनज् िाषरिलीर हो िहे हैं करोंनक नकसानों के जलीवन में इससे उन्नन् आ िहली है।
40 न्यू इडिया समाचार | 16-31 जनवरी 2022
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