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भारत     आजादी किा
                   अमृत महोतिव


        वसा्सुदेव बलवंत फड़के: अंग्जों के                       महसारसाजसा रणजवीत न्संह ने कवी ्वी एक
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        नसाक में दम करने वसाले नसायक                           शककतशसालवी न्सख ्ससाम्साजय कवी स्सापनसा


                 जनम: 4 नवंबर 1845, मृतयु: 17 फरवरी 1883                जनम : 13 नवंबर 1780, मृतयु : 27 जून 1839






















                 सुदेव बलवंत फड़के भारत के सवतंत्रता संग्राम के एक   ि   े र-ए-पंजाब  रणजीत  ट्संह  भारतीय  इट्तहास  के  एक  ऐस  े
                ऐसे रिांट्तकारी ट्सपाही रहे हैं ट्जनहें भारत के इट्तहास में   महान वयस्कत हैं, ट्जनहोंने न केवल पंजाब को एक सिकत
        वाआट्द रिांट्तकारी के तौर पर याद ट्कया जाता है। वे ट्रिट्टि   सूबे के रूप में एकजुट रखा, बस्लक जीट्वत रहते हुए उनहोंन  े
                                                                ं
        काल में ट्कसानों की दयनीय दिा को देखकर ट्वचट्लत हो उ्े थे और   अग्रजों को अपने साम्ाजय के पास भी नहीं फटकने ट्दया। रणजीत
                                                                  े
        उनका ट्वशवास दृढ़ था ट्क ‘सवराज’ ही इस रोग की दवा है। वासुदेव   ट्संह का जनम 13 नवंबर, 1780 में पंजाब के गुजरांवाला इलाके में
                                                                                                        ु
        बलवंत फड़के का जनम 4 नवंबर, 1845 को महाराष्रि के रायग ट्जले के   हुआ था जो अब पाट्कसतान में है। बचपन में उनका नाम बधि ट्संह
                                                                                      े
        ट्िरढोणे गांव में हुआ था। कहा जाता                                        था, लट्कन दस साल की उम् में अपनी
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        है ट्क 1857 के प्थम सवतंत्रता संग्राम   अंग्जों न  े    आज सवण्ष          पहली लड़ाई में ट्पता के कंधे से कंधा
        में ट्मली असफलता के बाद ट्रिट्टि   फड़के को पकड़न  े   मनदर कसा जो          ट्मला  कर  लड़ने  और  मैदान-ए-जंग
                                                                ं
        सरकार के ट्खलाफ सिसत्र ट्वद्रोह                                           में जीत हाट्सल करने के कारण उनके
        का संग्न खड़ा करने वाले फड़के  पर 50 हजसार रु.         सवरूप है उ्सकसा      ट्पता ने उनका नाम रणजीत रख ट्दया।
        भारत के पहले रिांट्तकारी योधिा थे।     कसा इनसाम घोनरत   श्य रणजवीत       चेचक के कारण बचपन ही में उनकी
                                                                े
        वह बचपन से ही बड़े ओजसवी और                                                बाई आंख की रोिनी चली गई थी और
        साहसी वयस्कत थे। ट्िक्ा पूरी करने   नकयसा ्सा।       न्संह को जसातसा है।  चेहरे पर ट्निान हो गए थे। एक आंख
        के बाद वह मुंबई चले गए और पुणे                                            की रोिनी जाने पर वे कहते थे ‘भगवान
        के  ट्मट्लरिी  एकाउंटस  ट्िपाट्टमेंट                                      ने मुझे एक आंख दी है, इसट्लए उसस  े
                                                                           ु
        में नौकरी कर ली। बावजूद इसके वह लगातार सवतंत्रता सेनाट्नयों   ट्दखने वाले ट्हंदू, मस्सलम, ट्सख, ईसाई, अमीर और गरीब मुझे तो सभी
        के संपक्क में रहे। कहा जाता है ट्क उन पर प्ट्सधि राष्रिवादी महादेव   बराबर ट्दखते हैं।’ जब रणजीत ट्संह बारह साल के थे ट्क तभी उनके
        गोट्वनद रानािे का अचछा खासा प्भाव था। नौकरी के दौरान फड़के   ट्पता का ट्नधन हो गया। इसके बाद वह ट्सखों की 12 ट्मसलों में से एक
        को अपनी मां के बीमार होने की सूचना ट्मली, लेट्कन वहां के अंग्रेज   सुकरचट्कया ट्मसल के सरदार बने। 20 साल की उम् तक रणजीत
        अट्धकाररयों ने उनहें छुट्टी नहीं दी। ऐसे में वह ट्बना छुट्टी के ही अपने   ट्संह ने पंजाब साम्ाजय खड़ा कर ट्दया था। 12 अप्ल 1801 को रणजीत
                                                                                                ै
        गांव चले गए लेट्कन जब तक वह पहुंचते, उनकी मां का ट्नधन हो   ट्सहं पंजाब के महाराजा बने। उनहोंने कई लड़ाइयां लड़ीं और पवजी
                                                                                                           ू
        गया। इस घटना ने उनके मन में अंग्रेजों के ट्खलाफ गुससा भर ट्दया।   पंजाब के ट्हससों पर भी कबजा ट्कया और उनहोंने एक मजबूत और
        ऐसे में वह अंग्रेजों के ट्खलाफ रिांट्त की तैयारी करने लगे। उनहोंने   िस्कतिाली ट्सख साम्ाजय की सथापना की।  साथ ही उनहोंने अमृतसर
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        आट्दवाट्सयों की सेना संगट््त की और 1879 में अंग्रेजों के ट्खलाफ   में हरमट्दर साट्हब को सोने से ढंककर सवणमा मट्दर में पररवट्तमात ट्कया
                                                                                              ं
        ट्वद्रोह की घोरणा कर दी। फड़के को 20 जुलाई, 1879 को ट्गरफतार कर   था। वो अपने दरबाररयों से कहते थे, 'मैं एक ट्कसान और एक ट्सपाही
        कालापानी की सजा देकर अंिमान भेज ट्दया गया। 17 फरवरी, 1883 को   हं, मुझे ट्कसी ट्दखावे की जरूरत नहीं। मेरी तलवार ही मुझमे वो फक  ्क
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        देि का यह वीर सपूत िहीद हो गया।                        पैदा कर देती है ट्जसकी मुझे जरूरत है।’



          42  न्यू इडिया समाचार | 1-15 नवंबर 2021
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