Page 45 - NIS Hindi 2021 November 1-15
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भारत आजादी किा
अमृत महोतिव
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कुवर न्संह: 80 ्ससाल कवी उम् में जवीवनभर ्संघर्षरत रहे क्सांनतकसारवी
क्सांनत कवी अगुवसाई करने वसाले नसायक कनव कसालोजवी नसारसायण रसाव
जनम: 13 नवंबर 1777, मृतयु : 26 अप्ल 1858 जनम : 9 ट्सतंबर 1914, मृतयु: 13 नवंबर 2002
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बा बू वीर कुवर ट्संह भारत के 1857 में हुए प्थम सवतंत्रता लोजी नारायण राव एक ऐसे सवतंत्रता सेनानी, भारतीय
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कट्व और एक सामाट्जक कायमाकतामा थे ट्जनह ‘कालोजी’
सग्राम के महानायक और एक ऐसे अद्भुत योधिा थे,
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ट्जनहोंने 80 साल की उम् में अग्रजों से लोहा लेकर ट्वजय काया ‘कलना’ के नाम से भी जाना जाता है। एक रिांट्तकारी
हाट्सल की थी। अनयाय ट्वरोधी और सवतंत्रता प्ेमी बाबू कुवर ट्संह एक ऐस े कट्व, कालोजी नारायण राव को लोग 'प्जा कट्व’(लोगों के कट्व) के नाम
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कुिल सेना नायक थे, ट्जनहोंने ट्रिट्टि सत्ता के ट्खलाफ न केवल अदमय से भी जानते हैं। 9 ट्सतंबर 1914 को कनामाटक के रत्तीहलली गांव में जनम े
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साहस का पररचय ट्दया, बस्लक दि को एकता और अखिता के सूत्र में राव तेलंगाना के वारंगल ट्जले के रहने वाले थे। उनहोंने ना केवल ट्नजाम
बांधने का भी काम ट्कया। 13 नवंबर के ट्खलाफ जन आंदोलन की अगुवाई
1777 को ट्बहार के भोजपुर ट्जल े युद्ध में गोलवी रसाव अपन े की थी बस्लक भारतीय सवतंत्रता सग्राम में
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के जगदीिपुर गांव में जनम कुवर भी बढ़-चढ़ कर ट्हससा ट्लया था। उनहोंन े
ट्संह ने ट्पता के ट्नधन के बाद अपनी लगवी तो अपनसा जवीवन कसाल में ततकालीन हैदराबाद राजय के सवतंत्रता
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ररयासत की ट्जममदारी संभाली। एक हसा् कई जनसानिकसार आंदोलन में सट्रिय रूप से भाग ट्लया और
बचपन में उनका मन घुड़सवारी, उनह ट्नजाम के अधीन जेल भी जाना पड़ा।
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तलवारबाजी और कुशती लड़ने में कसाटकर नदवी आंदोलनों ्स े साथ ही उनहोंने भारतीय सवतंत्रता सग्राम
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अट्धक लगता था। वह यधि कला में के ट्लए युवाओं को प्ोतसाट्हत और प्ररत
पूरी तरह कुिल थे और छापामार में बहसा नदयसा। जुड़ रहे। भी ट्कया था। इतना ही नहीं वह जीवनभर
यधि करने में उनकी महारत थी। िोट्रत और हाट्िए के वगमा के लोगों के
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ऐसा माना जाता है ट्क जगदीिपुर के जंगलों में ‘बसुररया बाबा’ नाम के ट्लए संघर करते रहे। यही कारण है ट्क उनके सभी कायगों में समाज के
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एक ट्सधि संत रहते थे ट्जनसे कुवर ट्संह ने दिभस्कत और सवाधीनता प्ट्त उनकी प्ट्तबधिता झलकती है। वह तेलंगाना क्ेत्र में जनाट्धकार और
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का पा् सीखा था। यही कारण है ट्क कुवर ट्संह बनारस, मथुरा, कानपुर, सामाट्जक आट्थमाक मुद्ों पर कई आंदोलनों से जुड़े रहे। भारत की आजादी
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लखनऊ जैसे कई सथानों पर गए और ट्रिट्टि हुकूमत के ट्खलाफ ट्वद्रोह के बाद 1958 में वह दो वर के ट्लये आंध्र प्दि ट्वधान परररद के सदसय
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की सट्रिय योजना बनाते रहे। वे एक ऐसे बहादुर वयस्कत थे ट्जनके बारे में भी रहे। उनहोंने आंध्र सरसवती परररद, आंध्र प्दि साक्रता अकादट्मयों
कहा जाता है ट्क जब उनके एक हाथ में गोली लगी तो उनहोंने उसी क्ण के सदसय और तेलंगाना राइटसमा एसोट्सएिन के अधयक् के रूप में भी
उस हाथ को काट कर गंगा में प्वाट्हत कर ट्दया। साथ ही कहा था, “ह े कायमा ट्कया। वह आयमा समाज से भी जुड़े थे। उनहोंने प्खयात िायर खलील
गंगा मैया। अपने ्यारे की यह अट्कचन भेंट सवीकार करो।” कुवर ट्संह ट्जरिान की उद कट्वताओं का अनुवाद भी ट्कया था और उनह इसके ट्लय े
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एक महान योधिा ही नहीं थे बस्लक अपने जीवन काल में उनहोंने कई राजय सरकार ने सवमाश्ेष्् अनुवाद का पुरसकार प्दान ट्कया था। साथ ही
सामाट्जक कायमा भी ट्कए। वे इतने लोकट्प्य रहे हैं ट्क ट्बहार की कई लोक राव को काकाट्तया ट्वशवट्वद्ालय से िाकटरेट की मानद उपाट्ध भी प्दान
भाराओं में उनकी प्िस्सत के गीत आज भी गाए जाते हैं। 1857 की रिांट्त के की गयी थी। भारत सरकार ने 1992 में उनह कला के ट्लए पद्म ट्वभरण स े
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इस महान नायक का 26 अप्ल, 1858 को ट्नधन हो गया। सममाट्नत ट्कया था। राव का 13 नवंबर 2002 को ट्नधन हो गया। n
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न्यू इडिया समाचार | 1-15 नवंबर 2021
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