Page 59 - NIS-HINDI 01-15 JUNE 2022
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देश    अमृत महोतसव



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       हो गरा। 3 औि 15 जून का नदन भाित के इनतहास    सन्ासी आंदोलन: गुररलला ्धि
       औि भूगोल को बदलने वाले नदन के तौि पि इनतहास
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       में दजया है करोंनक इसके बाद हए नवभाजन से किोड़ों   से अंरिेजों की छीन ली कोनठ्ां
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       लोग प्रभानवत हए औि उनहें नवट्थानपत होने के नलए
       मजबूि होना पड़ा। माना जाता है नक नवभाजन के           ित के इनतहास में “वंदे मातिम” एक ऐसा उद्ोष है जो हि दौि में,
       दौिान हई नहंसा में किलीब 10 लाख लोग मािे गए औि   भाहि वरस्कत के नलए अपनली मातृभूनम के प्रनत एक समनपयात आदिभाव देने
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       किलीब 2 किोड़ लोग प्रभानवत हए थे। रह नवभाजन    का नवचाि िहा है। भाितलीर ट्वतंत्रता संग्ाम के दौिान हजािों वलीिों ने िाषरि कली
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       मानव इनतहास में सबसे बड़े नवट्थापनों में से एक   खानति अपना सवयाट्व नरौछावि कि नदरा औि “वंदे मातिम” का उद्ोष किते
       है,  नजससे  लाखों  परिवािों  को  अपने  पैतृक  गांवों,   हए फांसली के फंदे से झूल गए। ट्वतंत्रता संग्ाम में आजादली का मूल मंत्र बन चके
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       कट्बों औि शहिों को छोड़ना पड़ा औि शिणाथषी       “वंदे मातिम” बोलते हए मातृभूनम के कई सपूतों ने अपने सलीने पि गोनलरां भली
                                                                     यु
       के रूप में एक नरा जलीवन जलीने के नलए मजबूि    खाई। इस “वंदे मातिम” को सबसे पहले बंनकम चंद्र चटजषी ने अपने उपनरास
       होना पड़ा। रहली कािण है नक िाषरि के नवभाजन के   “आनंद म्ठ” में नलखा था। इसली पयुट्तक में नजक्र है, सनरासली आंदोलन का। लंबे
       कािण अपनली जान गंवाने वाले औि अपनली जड़ों से   समर तक चले सनरासली आंदोलन ने अंग्जों को खूब छकारा औि इस आंदोलन
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       नवट्थानपत होने वाले सभली लोगों को उनचत श्धिांजनल   कली अगवाई नगिली संप्रदार के सनरानसरों ने कली थली। हमािे देश में हमेशा से ऋ
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       के रूप में केंद्र सिकाि ने हि साल 14 अगट्त को   नषरों औि सनरानसरों  ने देश काल परिस्ट्थनत के अनसाि आगे बढ़कि जनता के
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       उनके बनलदान को राद किने के नदवस के रूप में    नहतों के नलए कई काम नकए हैं। रहली कािण है नक जब जरूित महसूस हई तो
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       मनाने का फैसला नकरा। सिकाि ने 14 अगट्त को     उनहोंने अंग्जों के नखलाफ भली लोहा नलरा। ऐसे में उनहोंने न केवल िाषरिधमया कली
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       नवभाजन नवभलीनषका ट्मृनत नदवस के रूप में ्ोनषत   ट्थापना कली बस्लक रयुगधमया कली हंकाि बनकि भली सामने आए। सनरासली नवद्रोह
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       नकरा।  भाित  को  15  अगट्त,  1947  को  नब्नटश   मखर रूप से बंगाल औि नबहाि कली धितली
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       शासन  से  आजादली  नमलली  औि  इसली  नदन  ट्वतंत्रता   पि हली हआ, करोंनक रहीं अंग्जों ने सबसे    माना जाता है लक िंबे
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       नदवस मनारा जाता है जो िाषरि के नलए एक खशली    पहले अपने पांव जमाए थे। अंग्जों के नवरुधि  सम्य तक चिे सन्यासी
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       औि गवया का अवसि है। हालांनक, इस आजादली के     सबसे पहला नवद्रोह वट्तयुत: सनरानसरों  का   आंदोिन ने अंग्रेजों के
       नलए हमें कई आंदोलनों, सं्षथों औि पड़ावों से होकि     हली माना जाता है औि कहा जाता है नक इस
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       गजिना पड़ा।                                    आंदोलन में कई हजाि लोग मािे गए थे।   नाक में दम कर लद्या था
          भाित कली आजादली के प्रथम सोपान कहे जाने    बंगाल पि अंग्जों का कबजा होने के बाद   और इस आंदोिन की
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       वाले  1857  में  हए  ट्वतंत्रता  संग्ाम  से  पहले  भली   1770 में भलीषण अकाल पड़ा। बावजूद इसके  अगुवाई लगरी संप्रदा्य के
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       अंग्जों  के  नखलाफ  देश  में  कई  आंदोलन  हए   अंग्जों ने सखतली से कि वसूलली किना जािली   सन्यालस्यों ने की थी।
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       थे।  इन  आंदोलनों  में  फकलीि  आंदोलन  (1776-  िखा औि वे धानमयाक ट्थलों पि आने-जाने
       77), सनरासली आंदोलन, पाड्यगािों का आंदोलन     पि प्रनतबंध लगाने लगे। अंग्जों कली इस क्रूि
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       (1801-1805),  वेललोि  आंदोलन  (1806),         नलीनत से सनरासली नािाज हो गए औि उनहोंने आंदोलन किने का ननणयार नलरा।
       नारक  आंदोलन  (1806),  त्रावणकोि  आंदोलन      सनरानसरों  को इस आंदोलन में नकसान, जमींदाि अौि छोटे सिदािों का भिपूि
       (1808),  चेिो  आंदोलन  (1802),  बिेलली-       साथ नमला। उनहोंने एकजट होकि अंग्जों के नखलाफ आंदोलन शरु कि नदरा।
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       अललीगढ़ के आंदोलन (1816-1817), ओनिशा में       िाषरि के प्रनत सनरासली आंदोलन के आंदोलनकारिरों के समपयाण का अंदाजा इसली
       पारकों का आंदोलन (1821), नकत्तूि का आंदोलन    बात से लगारा जा सकता है नक इन वलीिों ने देश को मां औि ट्वरं को उसका
       (1824), असम में अहोम आंदोलन  (1824),          संतान ्ोनषत नकरा था। वे गरिलला रयुधि किने में नसधिट्त थे। कहते हैं नक वे
                                                                          यु
       पाल  औि  कुगया  आंदोलन  (1832-37),  बहाबली    सिकािली खजाने को लूट कि गिलीबों में बांट देते थे। इन आंदोलनकारिरों के प्रभाव
       आंदोलन (1830-31), गोंि आंदोलन (1833-          का अंदाजा इस बात से लगारा जा सकता था नक इन लोगों ने अंग्जों कली कई
                                                                                                   े
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       57), कोल आंदोलन(1824-1850) प्रमख थे।          कोन्ठरां भली छलीन कि बहत से अंग्ज अफसिों को मौत के ्ाट उताि नदरा था।
                                                                      यु
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          आजादी  के  अमृत  महोतसव  में  इस  बार      इस आंदोलन को दबाने के नलए अंग्जों को अपनली पूिली ताकत लगानली पड़ली औि
                                                                              े
       के अंक में ऐसे ही कुछ आंदोलनरों पर संिषिपत    आनखिकाि बंगाल के गवनयाि जनिल वािेन हेस्ट्टग एक लंबे अनभरान के बाद
                                                                                       ं
       प्रकाश...                                     इस नवद्रोह को दबाने में सफल हो पाए थे।




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