Page 45 - NIS Hindi 01-15 July 2022
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राष्ट्र  अमृि महोतसि



         अलेि पात्ा ने 18 साल की उम्र से ही सवतंत्ता



                   संग्ाम में राग लेना कर द्दया ्ा शुरू




                                        जनम : 1 जुलाई 1923, मृतयु : 17 नवंबर 1999

              ितलीर ट्वतंत्रता संग्ाम में भाग लेने वाले अलेख पात्रा भाितलीर   रूप में काम नकरा। हालांनक, वह अनधक नदनों तक कलकत्ता में
        भािाषरिवाद के एक ऐसे प्रमुख नेता थे नजनहोंने भाित कली आजादली   नहीं िह पाए करोंनक वह आचार हरिहि औि गोपबंधु दास के साथ
                                                                                    या
        के नलए आंदोलनों में भाग नलरा। इतना हली नहीं उनहोंने उड़लीसा (अब   नमल कि ट्वतंत्रता संग्ाम में खुलकि भाग लेना चाहते थे। साथ
        ओनिशा) के नवनभन्न क्ेत्रों में नागरिक अनधकाि औि परायाविण   हली उनके अनर ट्वतंत्रता सेनानली नमत्र भली चाहते थे नक वह भूनमगत
        संिक्ण आंदोलनों में नानगिकों को भाग लेने के नलए प्रेरित नकरा। 1   होकि काम न किें औि वापस आकि अंग्जों के नखलाफ आजादली
                                                                                            े
        जुलाई 1923 को ओनिशा के पुिली में जनमे अलेख  पात्रा बचपन से   कली लड़ाई में खुलकि भाग ले। नफि करा था, उनहोंने वापस कलकत्ता
        हली देशभस्कत कली भावना से इतने ओत-प्रोत थे नक उनहोंने 18 साल   से पुिली आने का ननशचर कि नलरा। ऐसे में जब वह कलकत्ता से
        कली उम्र में हली ट्वतंत्रता संग्ाम आंदोलन में भाग लेना शुरू कि नदरा।   वापस पुिली आ िहे थे उसली दौिान पुनलस ने उनहें िेलवे ट्टेशन पि हली
        कहा जाता है नक ट्वतंत्रता संग्ाम के दौिान उनहोंने अपने दोट्तों के   नगिफताि कि नफि से जेल में िाल नदरा। जेल में िहने के दौिान वह
        साथ नमल कि ननमापाड़ा थाना को जला नदरा था। इस घटना के   महातमा गांधली के ननददेशों का पालन किते थे औि कपड़ा बनाने के
        दौिान पुनलस ने आंदोलनकारिरों को िोकने के नलए गोललीबािली कली   नलए सूत काटते थे। वह साफ-सफाई का धरान िखते हुए शौचालरों
        नजसमें उनके एक किलीबली सहरोगली कली मौके पि हली मौत हो गई।   कली सफाई भली किते थे। जेल से छूटने के बाद वे ट्विाज, गृह प्रशासन
        अलेख  पात्रा को वहां मौके पि हली नगिफताि कि नलरा गरा औि   औि अनर सववोदर कारषों का प्रनशक्ण लेने वधाया चले गए। वहां से
        उनहें पुिली के जेल में िाल नदरा गरा। वहां उन पि अतराचाि नकरा   वापस ओनिशा आने के बाद, वह समाज सुधाि के नलए काम किने
        जाता लेनकन वह इन रातनाओं से नवचनलत नहीं होते थे। जेल से   लगे। भाित कली आजादली के बाद भली वह जन कलराण के नलए काम
        रिहा होने के बाद नरिनटश उपननवेशवाद के नखलाफ उनहोंने अपना   किते िहे औि लगाताि सनक्र बने िहे। आजादली के बाद केंद् औि
        संघषया भूनमगत होकि जािली िखा। इस दौिान वह कलकत्ता(अब   िाजर सिकाि ने उनहें सममाननत भली नकरा। 17 नवंबि 1999 को 76
        कोलकाता) चले गए। रहां उनहोंने एक परिवाि में घिेलू नौकि के   साल कली उम्र में उनका ननधन हो गरा।





                   अमरेंद्र नयाथ च्टर्जी न दश की आर्यादी
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                      के विए अपनया्या कयांवतकयारी तरीकया



                                      जनम : 1 जुलाई 1880, मृतरु : 4 नसतंबि 1957
        र   ु  गांति समूह के शलीषया नेताओं में से एक माने जाने वाले   नाम भाितलीर ट्वतंत्रता संग्ाम के उन रोधिाओं में शानमल है जो

                                                             भाित को क्ांनत के दम पि अंग्जों कली गुलामली से मुस्कत नदलाना
                                                                                     े
             अमिेंद् नाथ चटजती एक ऐसे प्रनसधि क्ांनतकािली थे नजन पि
             अपने संग्ठन के नलए धन एकत्र किने का दानरतव था।   चाहते थे। रहली कािण है नक वह रुगांति समूह से जुड़े नजसके
        उनकली क्ांनतकािली गनतनवनधरां मुखर रूप से नबहाि, उड़लीसा औि   प्रमुख गनतनवनधरों में ट्थान-ट्थान पि शाखाओं के माधरम से
        संरुकत प्रांत में केंनद्त थीं। पढ़ाई के नदनों में हली उनकली मुलाकात   नवरुवकों को एकत्र किना, उनहें माननसक व शािलीरिक रूप से
        कुछ ऐसे लोगों से हुई जो अंग्जों को माि भगाने के नलए क्ांनतकािली   शस्कतशालली बनाना था तानक वे अंग्जों का िटकि मुकाबला
                                                                                         े
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        तिलीका अपनाने में नवशवास िखते थे। इनमें उपेंद्नाथ बनजती औि   कि सकें। इतना हली नहीं, रह संग्ठन गुपत तिलीके से बम बनाने,
        हृनषकेश कांजलीलाल का नाम प्रमुख है। अमिद् नाथ चटजती का   शट्त्र-प्रनशक्ण देने औि दुषट अंग्ज अनधकारिरों को मौत के
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                                                                                       े


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