Page 53 - NIS - Hindi 16-30 June, 2022
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राष्ट्र आपातकाल के 47 वष्स
जाता है। 1975 कली 25 जून कली उस िात को कोई भली लोकतंत्र प्रेमली
भाितवासली भला नहीं सकता है जब देश को एक प्रकाि से जेलखाने
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में बदल नदरा गरा था, नविोधली ट्वि को दबाने कली कोनशश हई थली।
जरप्रकाश नािारण सनहत देश के गणमानर नेताओं को जेलों में बंद
आपातकाल के उन बुिे वदनों को कि नदरा गरा था। नरार वरवट्था भली आपातकाल के उस भरावह
कभी नहीं भुलाया िा सकता। 1975 रूप कली छारा से बच नहीं पाई थली। मलीनिरा पि भली अंकुश लगा नदरा
से 1977 की समयािवध संसथानों गरा था। संपादक के तौि पि कई अखबािों के कारायालरों में पयुनलस
के अनधकािली नब्ठा नदए गए थे।
के सुवनयोवित तिीके से विनाश की लनकन नकसली को भली रह बात नहीं भूलनली चानहए नक भाित कली
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साक्ी िही है। आइए हम भाित की सबसे बड़ली ताकत उसका लोकतंत्र है। लोक शस्कत है। देश का
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लोकतांवत्क भािना को मिबूत किने एक-एक नागरिक है। जब भली इस पि कोई आंच आई है इस श्रष्ठ
के वलए हि संभि प्यास किें औि हमािे जनसमूह ने अपनली इसली ताकत से लोकतंत्र को जली कि नदखारा
है। जब देश में आपातकाल लगारा गरा तब उसका नविोध नसफ्फ
संविधान में वनवहत मूलयों पि खिा िाजनलीनतक दारिे रा िाजनेताओं तक सलीनमत नहीं था, जेल के
उतिने का संकलप लें। हम उन सभी सलाखों तक हली आंदोलन नसमट नहीं गरा था बस्लक जन-जन के
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महानुभािों को याद किते हैं विनहोंने नदल में एक आक्ोश था। खोरे हए लोकतंत्र कली एक तड़प थली।
आपातकाल का वििोध किते हुए जैसे नदन-िात खाना नमले तो भूख करा होतली है इसका अहसास
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भाितीय लोकतंत् की िक्ा की। नहीं होता, लनकन जब ना नमले तो उसका अहसास भूखा वरस्कत
बेहति महसूस किता है। वैसे हली सामानर जलीवन में लोकतंत्र के
-निेंद्र मोदी, प्धानमंत्ी अनधकािों कली अनभनत भली तब होतली है जब कोई लोकतानत्रक
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अनधकािों को छलीन लेता है। आपातकाल में देश के हि नागरिक
को लगने लगा था नक उसका कुछ छलीन नलरा गरा है। नकसली
समाज वरवट्था को चलाने के नलए भली सनवधान कली जरूित होतली
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है, कारदे, कानून, ननरमों कली भली आवशरकता होतली है, अनधकाि
औि कतयावर कली भली बात होतली है। लनकन भाित कली रह खूबसितली
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है नक कोई नागरिक गवया के साथ रह कह सकता है नक उसके
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नलए कानून औि ननरमों से इति लोकतंत्र हमािे सट्काि हैं, हमािली
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सट्कृनत है, हमािली नविासत है औि उस नविासत को लेकि हम
पले-बढे लोग हैं। रहली वजह है नक उसकली कमली को देशवानसरों
ने आपातकाल में किलीब से अनयुभव नकरा था। इसली का नतलीजा था
नक 1977 के आम चयुनाव को लोगों ने अपने नहत के नलए नहीं,
बस्लक लोकतंत्र कली िक्ा के नलए आहूत कि नदरा था। जन-जन
ने अपने हकों, जरूितों कली पिवाह नकए नबना नसफ्फ लोकतंत्र कली
िक्ा के नलए मतदान नकरा था। अमलीि से लेकि गिलीब तक सभली
ने एकजटता के साथ अपना फैसला सयुनारा था।
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‘आजादी की नई ऊजा्स’
आपातकाल कली पलीड़ा वहली महसूस कि सकता है नजसने इसे झेला
हो, आज अखबािों में आलेख नलख सकते हैं, स््टवटि रा सोशल
मलीनिरा पि जो चाहे नलख सकते हैं, बोल सकते हैं। सिकाि के
न्यू इंडि्ा समाचार | 16-30 जन 2022 51
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